हे!भारत के वीर किसान......!


हे!भारत के वीर किसान कभी तुमने करना सीखा नहीं विश्राम।
 मेहनत की तुम रोटी खाते फिर भी देश से तुम क्यों लाठी खाते।
 फिक्र नहीं है मरने की चाहे किस्मत हो कुछ करने की
 दिल्ली के सरताज़ मगर हैं लाठी के मुमताज तुम ही हो
 गैरों जैसा प़्यार दिया है लेकिन तुम सबको सम़्मान दिया है
 समझ नहीं है आर्यावर्त में क्यों किसान अब बे मौत मारा है
 हे!भारत के वीर किसान हे!भारत के वीर किसान


 रूखी-सूखी रोटी खा के हर देश का तुम पेट भरा है पता नहीं अब हर किसान दिल्ली पर आक्रोश क्यों खड़ा है 
बड़ी परिश्रम से बेटे को पढ़ाया मेहनत का हर पाठ सिखाया
 पता नहीं क्यों हर किसान का बेटा देश में बेरोजगार खड़ा है
 जय जवान और जय किसान का नारा देकर सब ने इसको ऋणी किया है
 फिर क्यों आज हर किसान धान और गेहूं बेचने के लिए भीख मांगते क्यों खड़ा है
 हे!भारत के वीर किसान हे!भारत के वीर किसान!!!


 हर गरीब और बड़ों का पेट भरने से नहीं डरा है लेकिन तुम अपने घर को भूखा और देश को अच्छा मकान दिया है
 सबके सोए भाग को प्रकाश दिया है कई रात जग-जग कर ह़रियाली से स़ुसज़्जित किया है
 बंजर जमीन से सोना और भू-धारा को पानी दिया है!
 लेकिन अपने हक की लड़ाई के लिए सूखे रेगिस़्तान में बे मौत खड़ा है जब नहीं मिलता सरकार से कोई नुक्सा तब बेचारा किसान आत्महत्या किया है
 हे!भारत के वीर किसान हे!भारत के वीर किसान!!!


 मध्य प्रदेश हो महाराष्ट्र पंजाब हो या भारत का सौराष्ट्र राज़नीति के आगे किसान बेचारा बे मौत मारा है!
 साल भर मेहनत करके सरकार का हर बिल (ऋण) भरा है
 फ़िर भी मेरा किसान एक-एक रूपिया के लिए ललख़ता-बिलख़ता खड़ा है
 डूबा है कर्ज़ और ब्याज़ में आस लगाए बैठा है बेटी की बारात में
 "गजेंद्र" बहोत रोता है देख़ दशा भारत के हर किसान में
 हे!भारत के वीर किसान हे!भारत के वीर किसान!!!
               आपका
गजेन्द्र सिंह गज्जू भइया गढ़वा कलां सतना(म.प्र.)